कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी नरक चतुर्दशी अथवा रूप चतुर्दशी एव छोटी दीपावली के रूप में मनायी जाती है। यह त्यौहार नरक चौदस या नर्का पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है। शास्त्रीय कथानुसार आज ही के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर को उसके अंत समय दिए वर के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व जो अभ्यंगस्नान ( शरीर में तेल लगा कर ) करता है, उसे कृष्ण कृपा से नरक यातना नहीं भुगतनी पडती, उसके सारे पाप क्षयं हो जाते है । इस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप का नाश होता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।अन्य प्राचीन कथानुसार प्राचीन समय में रन्तिदेवी नामक राजा हुए थे । वह पुर्व जन्म में एक धर्मात्मा तथा दानी थे । इस जन्म में भी वे दानी थे उनके अन्तिम समय में यमदूत उन्हे नरक में ले जाने लिए आए । राजा ने कहा मैं तो दान दक्षिणा तथा सत्यकर्म करता रहा हूँ । फिर मुझे नरक क्यो ले जाना चाहते हो । यमदुतो ने बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से भुख से व्याकुल ब्राह्यण लौट गया था। इसलिए तुम्हे नरक मे जाना पडेगा । यह सुनकर राजा ने यमदूतो से विनती कि की मेरी आयु एक वर्ष और बढा दी जाए यमदुतो ने बिना सोच विचार किये राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली। यमदूत चले गये। राजा ने ऋषियो के पास जाकर इस पाप से मुक्ति का उपाय पुछा । ऋषियो ने बताया - हे राजन! तुम कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखकर भगवान कृष्ण का पूजन करना, ब्राह्यणो को भोजन कराकर दक्षिणा देना तथा अपना अपराध ब्राह्यणा को बताकर उनसे क्षमा याचना करना, तब तुम पाप से मुक्त हो जाओगे । कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को राजा ने नियम पूर्वक व्रत रखा और विष्णु लोक को प्राप्त हुआ |
कथा यह भी है की पुरातनकाल में है हिरण्यगर्भ नाम के स्थान पर एक योगीराज रहते थे । उन्होंने भगवान की घोर आरधना के लिए समाधि शुरू की। समाधि लगाए कुछ दिन ही बीते थे कि उनके शरीर में कीडे पड गए । योगीराज को काफी दुख हुआ।
नारद मुनि उस समय वहाँ से निकले और योगीराज को व्यथित देख उनके के दुख का कारण पूछा। योगीराज ने अपना दुख बताया तो नारद बोले कि हे योगीराज आपने आपध्धर्म अर्थात देह आचार का पालन नहीं किया इसलिए आपकी यह दशा हुई । अब आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रख भगवान का स्मरण करे व पूजा करे तो आपकी देह पहले जैसी हो जाएगी व आप रूप सौन्दर्य को प्राप्त करगे। योगीराज ने नारद मुनि के सुझाव अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत सम्पूर्ण विधि से किया और भगवान कृष्ण की पूजा आरधना की और रूप सौन्दर्य को प्राप्त किया।
आज के दिन मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीप दान भी किया जाता है। नरक से मुक्ति पाने हेतु इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर शरीर में तेल लगाकर अपामार्ग ( चिचडी) पौधे सहित जल मे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नानादि से निर्वित्त होकर यमराज का तर्पण कर तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान भी बताया गया है। संध्याकालीन समय में यमराज के लिए दीपदान करना चाहीए । तद्पश्चात एक थाली में एक चौमुखी दीपक और सोलह छोटे दीपक लेकर तेल बाती डालकर जलाना चाहिए। इसी दिन देवाधीदेव महादेव के एकादश अवतार बजरंग बली भगवान हुनमान जी की जयंती भी मनाई जाती है। फिर रोली, धूप, अबीर, गुलाल, गुड, फूल आदि से पंचोपचार पूजन करें। यह पूजन स्त्रियों को घर के परूषों के बाद करना चाहिए। पूजा के बाद चौमुखी दीपक को घर के मुख्य द्वार पर रख दें और बाकी दीपक घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें। माँ लक्ष्मी की पूजा आज भी की जाती है | नरकचतुर्दशी के दिन अभ्यंगस्नान, यमतर्पण, आरती, ब्राह्मणभोज, वस्त्रदान, यमदीपदान, प्रदोषपूजा, शिवपूजा, दीपप्रज्वलन जैसी धार्मिक विधियां करने से कोई भी मनुष्य अपने सभी पाप बंधन से मुक्त हो कर हरीपद को प्राप्त कर्ता है |
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