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Tuesday, December 21, 2010

सुख समृद्धि आरोग्यता प्रदायक धनतेरस पर्व...!!!

जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार देवताओ के चिकित्सक आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। भगवान के 24 अवतारों में से स्वास्थ्य के देवता के रूप में भगवान धन्वंतरि का एक अवतार माना जाता है। इस दिन दीर्घ जीवन तथा आरोग्य लाभ के लिए भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि वे संपूर्ण पृथ्वी पर प्राणियों को रोगमुक्त करने के लिए भव-भेष्जावतार के रूप में प्रकट हुए थे। वास्तव में ‘स्वास्थ्य ही धन है’ यह कहावत संभवत: आदिकाल से चली आ रही है। स्वास्थ्य की कामना एवं धनतेरस का परस्पर संबंध यही बताता है कि लक्ष्मी का सदुपयोग करना व्यक्ति के स्वस्थ रहने पर ही संभव है। इसी कारण ‘धनतेरस’ के दिन स्वास्थ्य के अवतार धन्वंतरि की पूजा का विधान है। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है। देवी लक्ष्मी धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मनुष्य को उत्तम स्वस्थ्य और दीर्घ आयु की आवशकता होती है उन्होंने देवताओं को अमृतपान कराकर अमर कर दिया था। अतः वर्तमान संदर्भ में भी आयु और स्वस्थता की कामना से धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। दीपावली के दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें और माँ लक्ष्मी व  धनवन्तरि जी आराधना से धन धान्य और आरोग्यता की प्रार्थना होने लगती है | इसमें त्रयोदशी से दीपावली पर्व तक गौशाला की विशेष सफाई, गौ पूजन तथा उसके बाद सौभाग्यवती स्त्रियों को सप्तधान्य, सात मिठाई एवं विभिन्न प्रकार के फल देने की भी परंपरा भी है। गौत्रिरात्र-व्रत महालक्ष्मी पूजन दीपावली के दिन से तीन दिन का माना गया है, ऐसी मान्यता है कि इससे पारिवारिक सुख में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन धनधान्य से समृद्ध होता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार पौराणिक कथा है कि माँ लक्ष्मी को विष्णु जी का श्राप था कि उन्हें 13 वर्षों तक किसान के घर में रहना होगा। श्राप के दौरान किसान का घर धनसंपदा से भर गया। श्रापमुक्ति के उपरांत जब विष्णुजी लक्ष्मी को लेने आए तब किसान ने उन्हें रोकना चाहा। लक्ष्मीजी ने कहा कल त्रयोदशी है तुम साफ-सफाई करना, दीप जलाना और मेरा आह्वान करना। किसान ने ऐसा ही किया और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की । तभी से लक्ष्मी पूजन की प्रथा का प्रचलन आरंभ हुआ।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि जी का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है । धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चुकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं। 

धनतेरस की दिन संध्या काल में घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक पौराणीक कथानुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राज इस बात को जानकर बहुत दुखी हुए और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है । यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं। जहाँ जहाँ जिस जिस घर में यह पूजन होता है वहाँ अकाल मृत्यु का भय नही रहता है । इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वतरि पूजन सहित यमराज के निमित्त दीप दान की प्रथा का प्रचलन हुआ।

लोक परम्परानुसार धनतेरस के दिन स्वर्ण आभूषण  व चांदी खरीदने की भी प्रथा है। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है, मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें। 

धनतेरस पूजन में क्या करें

इस दिन धन्वंतरिजी का पूजन करें। नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें। सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर घर, दुकान आदि को सुसज्जित करें। मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएँ। यथाशक्ति ताँबे, पीतल, चाँदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करते हैं। हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें। कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआँ, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएँ। शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गद्दी बिछाएँ अथवा पुरानी गद्दी को ही साफ कर पुनः स्थापित करें।
सायंकाल पश्चात तेरह दीपक प्रज्वलित कर तिजोरी में कुबेर का ध्यान व पूजन करते हैं।

निम्न ध्यान बोलकर भगवान कुबेर पर फूल चढ़ाएँ - श्रेष्ठ विमान पर विराजमान, गरुड़मणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा एवं वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृत तुंदिल शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र निधीश्वर कुबेर का मैं ध्यान करता हूँ। इसके पश्चात निम्न मंत्र द्वारा चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें -
 कुबेर मंत्र:- 'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।'



शास्त्र का वचन है की :-
कार्तिक स्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखेयमदीपं वहिर्दघाद अपमृत्यु र्विनश्यति।
अर्थात विधिपूर्वक दीपदान करते हुए यम का अर्चनकरने से अपमृत्यु का भय नहीं होता।

इसके पश्चात कपूर से आरती उतारकर मंत्र पुष्पांजलि अर्पित करें।