Tuesday, December 21, 2010

4 जनवरी 2011 को सूर्य ग्रहण के प्रभाव व निवारण के उपाय....!!

हिन्दू सनातन परम्परा में जिस प्रकार ज्योतिष को एक विशेष स्थान प्राप्त है जो इस सृष्टी के कण कण में व्याप्त एक एक अणु में होने वाले लघु परिवर्तन को भी प्रभावित और नियंत्रित करता है तो वही जब ब्रह्माण्ड में होने वाली कोई बड़ी या छोटी खगोलीय घटना कैसे इससे बच सकती है और जब बात ग्रहण की हो चाहे वो सूर्य ग्रहण हो या चन्द्र ग्रहण उसका अलग स्थान है और होना भी चाइए | जब इस सम्पूर्ण सृष्टी को प्राण दायनी उर्जा देने वाला पिंड वह उर्जा स्तोत्र खुद ही ग्रहण में हो तब हमारी ये सृष्टी या मानव जाति उसके दुश प्रभाव से कैसे बच सकती है ? इस ब्रह्माण्ड में होने वाले हर एक बदलाव का प्रभाव सर्व प्रथम हमारी प्रकर्ति पर आता है जिससे मौसम में परिवर्तन आदि देखने में आते है तब कही जा कर मानव जीवन प्रभावित होता है | इस बार यह सूर्य ग्रहण मकर राशी पर है  जो 4 जनवरी 2011 के दिन नजर आयेगा | इस सूर्य ग्रहण की अल्प आकृ्ति ही नज़र आएगी क्यूंकि यह आंशिक ग्रहण होगा | यह ग्रहण यूं तो पृ्थ्वी पर दोपहर 12:10 से लेकर 4:37 मिनट तक रहेगा पर भारत में इसका सबसे पहला प्रभाव दिन के 4:37 मिनट पर प्रारम्भ होगा क्यूंकि यह आंशिक ग्रहण है तो अंत में जाते जाते इसका हल्का सा प्रभाव ही भारत पर होने वाला है | 


वर्ष 2011 में तीन सूर्य ग्रहण लगेगें, जो निम्न तिथियों में रहेगें.
4 जनवरी 2011 को आंशिक सूर्य ग्रहण.
01 जून 2011 को भी आंशिक सूर्य ग्रहण.
01 जूलाई 2011 को भी आंशिक सूर्य ग्रहण लगेगा.
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इस ग्रहण के प्रभाव में आने वाले मुख्य प्रदेश होंगे हरियाणा, दिल्ली,जम्मू-कश्मीर, उतराखण्ड,राजस्थान, पंजाब, गुजरात, उतर-प्रदेश के उतर-पश्चिमी भाग में दिखाई देगा | वही मुम्बई, मध्य-प्रदेश,  पूर्वी उतर-प्रदेश आदि ग्रहण के प्रभाव से मुक्त प्रदेश है |
जब हमारा यह उर्जा पिंड खुद संकट में हो तो हमारे लिए भी संकट की इस्थ्ती होती है जिससे अगर बचने का उपाय न किये जाये तो ग्रहण की नकारात्मक उर्जा हमारे जीवन को लम्बे समय तक प्रभावित कर सकती है | हमारे शास्त्रों में कुछ निश्चित नियम बताये गए है जिनका पालन कर हम ग्रहण के दुश प्रभाव से बच सकते है | ग्रहण का निश्चित सूतक अर्थात अशुद्ध समय होता है जो ग्रहण काल से पूर्व ही शुरू हो जाता है जिसमे भगवद भजन आदि ही करना चहिये | ग्रहण के स्पर्श से पूर्व के समय में स्नान, ग्रहण मध्य समय में होम और देव पूजन यहाँ ध्यान रहे की ग्रहण काल में देव पूजन में मूर्ति स्पर्श वर्जित है सिर्फ मानसिक पूजन आदि की ही आज्ञा है और ग्रहण के मोक्षकाल  में श्राद्ध और अन्न, वस्त्र, धनादि का दान और सर्व मुक्त होने पर स्नान करना चाहिए |
ग्रहण काल में सोना, भोजन करना, रोना- विलाप करना पूर्णता: निषिद्ध है | ग्रहण काल या सूतक कल में भगवद भजन, दान, जागरण आदि का ही महात्म शास्त्रों में वर्णित है | इस ग्रहण का सूतक काल 4 जनवरी को प्रात: 2 बजकर 37 मिनट पर प्रारम्भ हो जायेगा | सूतक काल में शिशु, बालकों, वृ्द्ध, रोगी व गर्भवती स्त्रियों को छोडकर अन्य लोगों को सूतक से पूर्व स्नान ध्यान से निर्वित्त हो भोजनादि ग्रहण कर लेना चाहिए जो शास्त्रोक्त व अनिवार्य है | तथा सूतक समय से पहले रसोई घर के भंडारगृह के सभी सूखे अन्न में कुशा रख देना श्रेयस्कर होता है उसके साथ साथ रसोई और भंडारगृह के प्रवेश द्वार पर थोडा सा गौ का गोबर लगाना भी लाभकारी है | गाय के गोबर में यह क्षमता है जो ग्रहण काल में उत्पन्न सूर्य के नकारात्मक प्रभाव को खाद्य पदार्थो को ख़राब करने से या दूषित होने बचाती है | ऎसा करने मात्र से हमारे खाद्य पदार्थ ग्रहण के दुश प्रभाव से अशुद्ध होने से बच जाते है |  
ग्रहण से पूर्व आम जनमानस किसी धार्मिक नदी, सरोवर, कुण्ड, तालाब आदि में स्नान कर दिनचर्या प्रारंभ करते है | शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के अवसर पर धार्मिक नदी या जल से स्नान करना, दान करना या कोई भी साधना करना इश्वरीय कृपा दायक होता है |  स्नान के लिये प्रयोग किये जाने वाले जलों में समुद्र का जल स्नान के लिये सबसे श्रेष्ठ कहा गया है | ग्रहण में समुद्र, नदी के जल या तीर्थों की नदी में स्नान करने से पुन्य फल की प्राप्ति होती है | किसी कारण वश अगर नदी का जल स्नान करने के लिये न मिल पाये तो तालाब का जल प्रयोग किया जा सकता है | वह भी न मिले तो झरने का जल या वर्षा जल जिसे स्वाति जल भी कहते है, लेना चाहिए | इसके बाद भूमि में स्थित जल को स्नान के लिये लिया जा सकता है | यदि कही जा पाना संभव नहीं तो घर में ही स्नान के जल में कोई भी तीर्थ जल मिला कर स्नान करे | ग्रहण के समय धारण किये हुए वस्त्र आदि को ग्रहण के पश्चात धोकर व शुद्ध करके ही धारण करने का विचार है | ग्रहण काल में निंदा करना, अनर्गल प्रलाप करना सर्वथा वर्जित है | इश्वरीय चर्चा अर्थात सत्संग आदि ही करे |

सूर्यग्रहण मे मंत्र जाप
पंचाक्षरी मंत्र - ॐ नम: शिवाय ।।
अष्टाक्षर गोपाल मंत्र - श्रीकृष्ण शरणं मम ।।
अष्टाक्षर विष्णु मंत्र - ॐ नमो नारायणाय नम:।।
गायत्री मंत्र - ॐ भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात् ।।
महा मृत्युंजय मंत्र - ॐ त्र्यम्बकं य्यजा महे सुगन्धिम्पुष्टि वर्द्धनम् उर्व्वा रुक मिव बन्धनान् मृत्योर्म्मुक्षीय मामृतात् ।।.
इसके पश्चात आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करना व सूर्य मंत्र का जाप और सूर्य सम्बन्धी दान लाभकारी होता है |

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