Tuesday, December 21, 2010

" नवरात्र में अभीष्ट कार्य सिद्धि के अनुभूत, दुर्लभ एवं विशेष प्रयोग "

 || जय दुर्गे...जय दुर्गे...शिव दुर्गे...शिव दुर्गे...||

नवरात्र में शक्ति साधना व कृपा प्राप्ति का का सरल उपाय दुर्गा सप्तशती का पाठ है। नवरात्र के दिवस काल में सविधि माँ के कलश स्थापना के साथ शतचंडी, नवचंडी, दुर्गा सप्तशती, देवी अथर्वशीर्ष का पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती के पाठ के कई विधि विधान है। दुर्गा सप्तशती महर्षि वेदव्यास रचित मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मन्वतर के देवी महात्म्य के सात सौ श्लोक का एक भाग है। दुर्गा सप्तशती में अध्याय एक से तेरह तक तीन चरित्र विभाग हैं। इसमें सात सौ श्लोक हैं। दुर्गा सप्तशती के छह अंग तेरह अध्याय को छोड़कर हैं। कवच, कीलक, अर्गला दुर्गासप्तशती के प्रथम तीन अंग और प्रधानिक आदि तीन रहस्य हैं। इसके अलावा और कई मंत्र भाग है जिसे पूरा करने से दुर्गा सप्तशती पाठ की पूर्णता होती है। इस संदर्भ में विद्वानों में मतांतर है। दुर्गा-सप्तशती को दुर्गा-पाठ, चंडी-पाठ से भी संबोधित करते हैं। चंडी पाठ में छह संवाद है। महर्षि मेधा ने सर्वप्रथम राजा सुरथ और समाधि वैश्य को दुर्गा का चरित्र सुनाया। तदनंतर यही कथा महर्षि मृकण्डु के पुत्र चिरंजीवी मार्कण्डेय ने मुनिवर भागुरि को सुनायी। यही कथा द्रोण पुत्र पक्षिगण ने महर्षि जैमिनी से कही। जैमिनी महर्षि वेदव्यास जी के शिष्य थे। यही कथा संवाद महर्षि वेदव्यास ने मार्क ण्डेय पुराण में यथावत् क्रम वर्णन कर लोकोपकार के लिए संसार में प्रचारित की। इस प्रकार दुर्गा सप्तशती में दुर्गा के चरित्रों का वर्णन है।मार्कण्डेय पुराण में ब्रह्माजी ने मनुष्यों के रक्षार्थ परम गोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों को बताया, जो देवी की नौ मूर्तियाँ-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नव दुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता है; क्योंकि श्री दुर्गा सप्तशती दैत्यों के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं। यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्तोत्र एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है।

देवी का ध्यान मंत्र ;-
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य। पसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य। 




इस प्रकार भगवती से प्रार्थना कर भगवती के शरणागत हो जाए। देवी कई जन्मों के पापों का संहार कर भक्त को तार देती है। वही जननी सृष्टि की आदि, अंत और मध्य है। 

देवी से प्रार्थना करें - शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे!
सर्वस्यार्तिंहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तुते॥ 





सर्वकल्याण एवं शुभार्थ प्रभावशाली माना गया है -सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके । शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥ 


बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए-सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥


सर्वबाधा शांति के लिए-सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।

आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के लिए इस चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया  है- देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥ 



अर्थात- शरण में आए हुए दीनों एवं पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब की पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है। देवी से प्रार्थना कर अपने रोग, अंदरूनी बीमारी को ठीक करने की प्रार्थना भी करें। ये भगवती आपके रोग को हरकर आपको स्वस्थ कर देगी। 





विपत्ति नाश के लिए-शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे। सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥


मोक्ष प्राप्ति के लिए-त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या।विश्वस्य बीजं परमासि माया।।सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्।त्वं वैप्रसन्ना भुवि मुक्त हेतु:।।


शक्ति प्राप्ति के लिए-
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोह्यस्तु ते।।


अर्थ:-  तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।

रक्षा का मंत्र-
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।


अर्थ:-  देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।

रोग नाश का मंत्र;- रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्।त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति। 

अर्थात- देवी ! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं। 

दारिद्र-दु:ख नाश के लिए-दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:।स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।।द्रारिद्र दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या।सर्वोपकारकारणाय सदाह्यह्यद्र्रचिता।।


ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, संपदा प्राप्ति एवं शत्रु भय मुक्ति-मोक्ष के लिए - 
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः। शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥


भय नाशक दुर्गा मंत्र -  
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते, भयेभ्यास्त्रहिनो देवी दुर्गे देवी  नमोस्तुते  |


स्वप्न में कार्य सिद्घि-असिद्घि जानने के लिए-

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके।मम सिद्घिमसिद्घिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय।।


अर्थात्- शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवी हम पर प्रसन्न होओ। संपूर्ण जगत माता प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरी! विश्व की रक्षा करो। देवी ! तुम्ही चराचर जगत की अधिश्वरी हो। 


माँ के कल्याणकारी स्वरुप का वर्णन-सृष्टिस्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तुते॥

अर्थात्- हे देवी नारायणी ! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरूषार्थों को सिद्ध करने वाली शरणागतवत्सला तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम सृष्टि पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणी! तुम्हें नमस्कार है।


इस प्रकार देवी की शरण में जाने वालों को इतनी शक्ति प्रदान कर देती है कि उस मनुष्य की शरण में दूसरे आने लग जाते हैं। देवी धर्म के विरोधी दैत्यों का नाश करने वाली है। देवताओं की रक्षा के लिए देवी ने दैत्यों का वध किया। वह आपके आतंरिक एवं बाह्य शत्रुओं का नाश करके आपकी रक्षा करेगी। आप बारंबार उसकी शरणागत हो एवं स्वरमय प्रार्थना करें | 

हे सर्वेश्वरी ! तुम तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो। पुन: भगवती के शरणागत जाकर भगवती चरित्र को पढ़ना, उनका गुणगान करने मात्र से सर्वबाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्र से संपन्न होंगे। इसमें तनिक भी संदेह नहीं। भगवती के प्रादुर्भाव क‍ी सुंदर गाथाएँ सुनकर मनुष्य निर्भय हो जाता है। मुझे अनुभव है कि भगवती के माहात्म्य को सुनने वाले पुरुष के सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं। उन्हें कल्याण की प्राप्ति होती है तथा उनका कुल आनंदित रहता है। स्वयं भगवती का वचन है कि मेरी शरण में आया हर व्यक्ति दु:ख से परे हो जाता है। यदि आप संगणित है तथा और आपके बीच दूरियाँ हो गई है तो आप पुन: संगठित हो जाएँगे। बालक अशांत है तो शांतिमय जीवन हो जाएगा। 

शांतिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्रदर्शने।ग्रहपीडासु चोग्रासु महात्मयं शणुयात्मम। 

सर्वत्र शांति कर्म में, बुरे स्वप्न दिखाई देने पर तथा ग्रहजनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर माहात्म्य श्रवण करना चाहिए। इससे सब पीड़ाएँ शांत और दूर हो जाती है। मनुष्यों के दु:स्वप्न भी शुभ स्वप्न में परिवर्तित हो जाते है। ग्रहों से अक्रांत हुए बालकों के लिए देवी का माहात्म्य शांतिकारक है। देवी प्रसन्न होकर धार्मिक बुद्धि, धन सभी प्रदान करती है। 

स्तुता सम्पूजिता पुष्पैर्धूपगंधादिभिस्तथा ददाति वित्तं पुत्रांश्च मति धर्मे गति शुभाम्।


जाप विधि- नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के बाद संकल्प लेकर प्रातः स्नान करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से गंध, पुष्प, धूप दीपक नैवेद्य निवेदित कर पूजा करें। मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष या तुलसी या चंदन की माला से मंत्र का जाप एक माला से पाँच माला तक पूर्ण कर अपना मनोरथ कहें। पूरी नवरात्रि जाप करने से वांच्छित मनोकामना अवश्य पूरी होती है। समयाभाव में केवल दस बार मंत्र का जाप निरंतर प्रतिदिन करने पर भी माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। दुर्गेदुर्गति नाशिनी जय जय ॥

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततंनम:। नम: प्रकृत्यै भद्राये नियता: प्रणता: स्मताम्। 

देवी को नमस्कार है, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है। हम लोग नियमपूर्वक जगदंबा को नमस्कार करते हैं। शैद्रा को नमस्कार है। नित्या गौरी एवं धात्री को बारंबार नमस्कार है। ज्योत्सनामयी चंद्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है। इस प्रकार देवी दुर्गा का स्मरण कर प्रार्थना करने मात्र से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करती है। देवी माँ दुर्गा अपनी शरण में आए हर शरणार्थी की रक्षा कर उसका उत्थान करती है। देवी की शरण में जाकर देवी से प्रार्थना करें, जिस देवी की स्वयं देवता प्रार्थना करते हैं। वह भगवती शरणागत को आशीर्वाद प्रदान करती है। जय दुर्गे...जय दुर्गे...शिव दुर्गे...शिव दुर्गे...||

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