Tuesday, December 21, 2010

काल से मुक्ति का अद्भुद पर्व " यम द्वितिया "....!!!

कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की द्वितिया को यम द्वितिया भी कहते है | इस दिन युमनाजी ने अपने घर आये हुये भाई यमराज को सत्कार पूर्वक भोजन कराया था अत: इस दिन मनुष्यों को अपनी भगिनी के हाथ का बना हुआ भोजना करना चाहिए और बहिन को शक्ति के अनुसार प्रसन्न करना चाहिए |  इस दिन यमुना जी में स्नान कर और भगवान यमराज जी का पूजन अवश्य करना चाहिए | जो मनुष्य कार्तिक शुक्ल द्वितिया के दिन अपनी भगिनी अर्थात बहन या धर्म भागिनी को अन्न - वस्त्र दान ,धन दान से संतुष्ट करता है उसके लिये वर्ष पर्यत अरोग्यता, दुखों से छुटकारा तथा शत्रु पर विजय प्राप्ति, दुर्घटना से बचाव, आकरण विवाद से सुरक्षा के साथ साथ मृत्यु के देवता यम की कृपा भी प्राप्त होती है इस दिन संध्या कालीन समय में एक सरसों के तेल का दीपक अपने घर के प्रमुख द्वार पर एक कौड़ी ड़ाल कर अवश्य रखना चाइये जिसे "यम दीप" कहते है जिससे अंधकार का नाश हो और जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति हो यम देव की कृपा कुटुंब पर अनवरत बनी रहे | बृज मंडल के प्राचीन गौरव की वृद्धि में यमुना की महत्ता का अनुपम योग रहा है। पुरातत्व की दृष्टि से ये कृष्ण काल से भी पूर्व अवशेष हैं, अतः कृष्ण कालीन निश्चित चिन्हों के रुप में इनका असाधारण महत्व माना गया है। यमुना उत्तर भारत की पुण्यमयी नदियों में गंगा के बाद सर्वाधिक प्रसिद्ध है। गंगा और यमुना के मध्यवर्ती पुरातन प्रदेश में आर्य संस्कृति का सवोत्तम रुप सजाया और सवारा गया था। उनके संगम पर ही आर्य सभ्यता के आदिम केन्द्र 'प्रतिष्ठानपुर' (वर्तमान प्रयाग के समीप 'झूँसी') की स्थापना हुई थी। यमुना के तट पर प्रागैतिहासिक काल में मधुपुरी अथवा मधुरा (वर्तमान मथुरा) को बसाया गया था। जहाँ द्वापर युग में भगवान् कृष्ण ने जन्म लिया था, इसी के तट पर महाभारत कालीन इन्द्रप्रस्थ (वर्तमान दिल्ली) और जैन साहित्य में वर्णित प्राचीन नगर सौरिपुर (वर्तमान बटेश्वर) की स्थापना की गयी थी। बौद्ध साहित्य में वर्णित प्राचीन नगरी कौशाम्बी भी इसी के तट पर स्थापित थी | पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार यमुना धर्मराज यम की बहिन है, अतः इसे यमी कहा जाता है। बहिन की पूजा के साथ भाई अर्थात मृत्यु के देवता यम की पूजा भी ब्रज में प्रचलित हो गयी । मथुरा सम्पूर्ण भारतवर्ष में यम पूजा का कदाचीत, एक मात्र स्थान है। कार्तिक शुक्ल द्वितिया को यह पूजा मथूरा में प्रतिवर्ष एक महान पर्व के रुप में की जाती है आपितु अब यह पूजा सम्पूर्ण भारत वर्ष में बड़े ही आदर भाव व सम्मान के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर भारत वर्ष के कोने - कोने से लाखों श्रद्धालु  आकर यमुना में स्नान करते हैं। इस दिन काले तिल, उरद की दाल, सरसों के तेल, काले कपडे,  कोयले, चमड़े की चप्पल, छाता, लोहे का कोई पात्र दान करने से पुण्यलाभ होता है और जमुना की कृपा के साथ साथ यम की भी कृपा प्राप्ति होती है |  उन स्नानार्थियों में अनेक भाई-बहिन होते हैं, जो उक्त अवसर पर स्नान करने के लिये मथुरा आते हैं। भाई-बहिन के स्नेह - वर्धन  का यह अनुपम त्यौहार यमुना नदी और मथुरामंडल के महत्व को बढ़ा देता है। संस्कृत और ब्रजभाषा के अनेक कवियों ने यमुना की प्रशस्ति के छन्दों की रचना द्वारा अपनी वाणी को पवित्र और स्थाई किया है।

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