Tuesday, December 21, 2010

सर्वसुख, समृद्धि, यश, आरोग्य दायक गोवर्धन पूजा का पर्व अन्नकूट...!!!

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है । इस दिन बलि पूजा, अन्न कुट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है । यह ब्रजवासियो का मुख्य त्यौहार है । अन्नकुट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई । गाय बैलआदि पशुओ को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन कियाजाता है । गायो का मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है । गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते है । कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के निमित्त भोग व नैवेद्य में नित्य के नियमित पदार्थों के अतिरिक्त यथासामर्थ्य अन्ने से बने कच्चे-पक्के भोग, फल, फूल; और चटनी, मुरब्बे, अचार आदि खट्टे - मीठे - अनेक प्रकार के पदार्थ जिन्हें "छप्पन भोग" कहते है बनाकर भगवान को अर्पण करने काविधान भागवत में बताया गया है, और फिर सभी सामग्री अपने परिवार , मित्रो को वितरण कर के प्रसाद ग्रहण करे । पूजा के निमित्त आज के दिन श्री कृष्ण ने पके हुये अन्नकूट भोग (अर्थात अन्न से निर्मित कच्चे पक्के भोग ) लगा दिये इसलिए इस दिन का नाम अन्नकूट भी पड़ा। अन्नकूट यथार्थ में गोवर्धन की पूजा का ही समारोह है । प्राचीन काल में व्रज के सम्पूर्ण नर - नारी अनेक पदार्थों से मेघो के स्वामी इन्द्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव मानते और इन्द्र का पूजन करते तथा नाना प्रकार के षडरसपूर्ण ( छप्पन भोग, छत्तीसों व्यञ्जन ) भोग लगाते थे । इस पर्व को गोवर्धन, अन्नकूट और बलिराज नाम से भी जाना जाता  है | इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की पूजा को बंद करा कर इस के स्थान पर गोवर्धन की पूजा को प्रारंभ किया था और दूसरी ओर स्वयं गोवर्धनं रूप धर कर पूजा ग्रहण की इससे कुपित होकर इंददेव ने मूसलाधार जल बरसाया और श्री कुष्ण जी ने गोप और गोपियों को बचाने के लिए अपनी कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्र का मानमर्दन किया था उनके ही स्मण के लिए गोवर्धन और गौ पूजन का विधान है | सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहें । सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियो पर एक जल की बूँद भी नही पडी । ब्रह्या जी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया है । उनसे तुम्हारा वैर लेना उचित नही है । श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। श्रीकृष्ण ने सातवे दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व उल्लास के साथ मनाओ।

यूँ तो आज गोवर्धन ब्रज की छोटी पहाड़ी है, किन्तु इसे गिरिराज (अर्थात पर्वतों का राजा) कहा जाता है। इसे यह महत्व या ऐसी संज्ञा इस लिये प्राप्त है क्यूँकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष है। उस समय की यमुना नदी जहाँ समय-समय पर अपनी धारा बदलती रही है, वहां गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रुप में विधमान है। इसे भगवान कृष्ण का स्वरुप और उनका प्रतिक भी माना जाता है |और इसी रुप में इसकी पूजा भी की जाती है। बल्लभ सम्प्रदाय के उपास्य देव श्रीनाथ जी का प्राकट्य स्थल होने के कारण इसकी महत्ता और बढ़ जाती है । गर्ग संहिता में इसके महत्व का कथन करते हुए कहा गया है - गोवर्धन पर्वतों का राजा और हरि का प्यारा है। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में कोई दूसरा तीर्थ नहीं है। यद्यपि वर्तमान काल में इसका आकार-प्रकार और प्राकृतिक सौंदर्य पूर्व की अपेक्षा क्षीण हो गया है, फिर भी इसका महत्व कदापि कम नहीं हुआ है। इस दिन स्नान से पूर्व तेलाभ्यंग अवश्य करना चहिये | इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दुःख दारिद्र्य का नाश होता है |  इस दिन जो शुद्ध भाव से भग्वत चरण में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह वर्ष पर्यंत सुखी और समृद्ध रहता है यदि आज के दिन कोई दुखी है तो वर्ष भर दुखी रहेगा इसलिए मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए |

No comments:

Post a Comment