भारत भूमि की हर एक परम्परा, मान्यता में मानव कल्याण और वेदोक्त व शास्त्रीय बाते छुपी है | ये कह सकते है के भारतीय सनातन पूजा पद्धति तो वेदों का सार है ही उसके साथ साथ आम जीवन की लोक परम्परा जिसे हम लोकाचार कहते है उनमे भी शास्त्रों, वेदों के बहुमूल्य उपदेश छुपे है | यथार्थ में नवदुर्गा में नव औषधियों का गहरा राज़ छुपा है | भारतीय आयुर्वेद वेदों की एक बड़ी ही समृद्ध शाखा है | जिसके माध्यम से ऋषि धन्वन्तरी ने और फिर ऋषि सुश्रुत ने इससेजनता का कल्याण किया | सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया परंतु गुप्त ही रहा। उसी श्रेणी में हमारे ऋषि मुनियों ने अनुसन्धान के माध्यम से यह पाया के यह नव दुर्गा की जो शक्ति है व हमारी आस पास पाए जाने वाली कुछ सर्व सुलभ किन्तु दिव्य रूप से चमत्कारी औषधियों में व्याप्त है | जिसे यदि माँ को अर्पित किया जाये और फिर स्वयं ग्रहन किया जाये तो मानव कल्याण और सुगम व प्रत्यक्ष हो जायेगा | इसी प्रक्रिया में भारतीय पाक कला या कहे की भारतीय रसोई पूर्ण रूप से आयुर्वेद का भंडार है जहाँ प्रयुक्त होने वाली सभी चीज़े कोई न कोई आयुर्वेदिक गुण से परिपूर्ण है जो पौष्टिकता, स्वाद, जायका, स्वास्थ्य और कही प्राप्त नहीं |
भक्तों की जिज्ञासा की संतुष्टि करते हुए यहाँ नौ दुर्गा के औषधि रूप दे रहे हैं। यहाँ हम चर्चा कर रहे है उन्ही कुछ दिव्य पदार्थो की जिनका भोग हवन, यज्ञ के माध्यम से या पकवान के माध्यम से माँ को अत्यंत प्रिय है | जानिए नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में कैसे कार्य करते हैं एवं अपने शरण में आने वाले भक्तों को कैसे सुख पहुँचाते हैं और कल्याण करते है। इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है। नौ प्रमुख दुर्गा का विवेचन किया है। ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियाँ ही हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।पंचम स्कन्दमातेति षुठ कात्यायनीति च।सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टम।।नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।
ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली है। ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील है। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है। ये आराधना मनुष्य विशेषकर नौरात्रि, चैत्रीय एवं अगहन (क्वार) में करता है। इस समस्त देवियों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं का काल कहा जाता है।
प्रथम शैलपुत्री (हरड़,हर्रे) - प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। इस भगवती
देवी शैलपुत्री को हिमावती हरड़ कहते हैं।
यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है और यह भारतीय पारम्परिक रसोई का एक अहम् हिस्सा है | जो सात प्रकार की होती है।
१- हरीतिका - हरी जो भय को हरने वाली है।
२- पथया - जो हित करने वाली है।
३- कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है।
४- अमृता- अमृत के समान प्रभाव वाली बताई गई है |
५- हेमवती- हिमालय पर होने वालीदुर्लभ औषधि है।
६- चेतकी - जो चित्त को प्रसन्न करने वाली है।
७- श्रेयसी- यशदाता शिवा कल्याण करने वाली होती है।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) - दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी कहा है। ब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।
क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख औषधि है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति ने ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।
तृतीय चंद्रघंटा (चन्दुसूर) - दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है। ये कल्याणकारी है। इस औषधि से मोटापा दूर होता है। इसलिए इसको चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, खत को शुद्ध करने वाली एवं हृदयरोग को ठीक करने वाली
चंद्रिका औषधि है।अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी ने चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।
चतुर्थ कुष्माण्डा (कुम्हडा) - दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस फल / औषधि से बड़ा ही स्वादिस्ट व पुष्टिकारक मिस्ठान पता बनाया जाता है। इसे कुम्हडा कहते हैं। घर घर में इसकी सभी बड़ी की प्रचलित है | यह भारतीय जीवन शाली का एक प्रमुख अंग है | कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार को ठीक करता है। एवं पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं वायु विकार दूर करता है। यह दो प्रकार का होता है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति ने कोहड़ा का उपयोग के साथ माँ कुष्माण्डा देवी की आराधना भी अवश्य करना चाहिए।
पंचम स्कंदमाता (अलसी) - दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंद माता है। इसे पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी के रूप में जानी जाती है। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है। इसका तेल काफी प्रसिद्द है जिसे भोजन बनाने की प्रक्रिया में विशेषत: प्रयुक्त किया जाता है | इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की आराधना करना चाहिए।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
षष्ठम कात्यायनी (मोइया) - दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इस आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है। जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका इसको मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के
रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी को माँ कात्यायनी की पूजा करनी चहिये |
सप्तम कालरात्रि (नागदौन) - दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगा ले तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों की नाशक औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करनी चाहिए।
अष्टम महागौरी (तुलसी) - दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है। जिसका भारतीय परम्परा व मान्यता में अपना अलग ही स्थान है | भारतीय वास्तु सिधांत के अनुसार इसका घर में होना और प्रात: दर्शन करना स्वर्ण दान के बराबर महात्यम देता है | जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है यह प्रत्येक घर में लगाई जाने वाली, वायु व उर्जा शोधक है। शास्त्रों में इस कृष्ण की पत्नी भी बताया गया है | यह प्रभाव और प्रकृति में अमृत तत्त्व से परिपूर्ण है | तुलसी सात प्रकार की होती है। सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक, षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है। रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।
नवम सिद्धदात्री (शतावरी) - दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है। जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। विशेषकर महिलाओ के स्वास्थ्य की कमजोरी की सभी आयुर्वेदिक दवाओ का यह प्रमुख और प्रधान तत्त्व है | यह कौमार्य वर्धक है | शतावरी बुद्धि, बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक है। हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिधात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए।
इस प्रकार मार्कण्डेय पुराण के अनुसार आयुर्वेद की भाषा में उपरोक्त नौ देवी अर्थात नौ आयुर्वेदिक औषधि के रूप में मनुष्य के प्रत्येक रोग, बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित एवं वात, पित्त, कफ का उचित संतुलन और शुद्धि कर मनुष्य को दीर्घजीवी और स्वस्थ करती है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन से साथ साथ इन औषधियों को माता को यज्ञ, हवन व भोग के माध्यम से समर्पित भी करना चहिये जिससे इनके प्रभाव में और वृद्धि हो सके |
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