आकाश, अग्नि, जल, वायु एवं पृथ्वी इन पांच तत्वों को हमारे सभी प्रमुख शास्त्रों में पंचमहाभूत कहा गया है, यह सिद्धांत मनुष्य जीवन का मूल है। वास्तु शास्त्र में भी इसके बारे में विस्तृत वर्णन है क्यूंकि वास्तु शास्त्र का आधार ही प्रकृति है अर्थात प्रकृति प्रदत्त शुद्ध, प्राणदाई उर्जा का उचित संचरण ही वास्तु शास्त्र है | जिस प्रकार नियंता, सृष्टिकर्ता परम पिता परमेश्वर पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), प्रकाश, वायु व आकाश को रचकर, उन्हें संतुलित रखकर संसार को नियमपूर्वक चलाते हैं। मननशील विद्वान लोग उन्हें अपने भीतर जानकर संतुलित हो प्रबल प्रशस्त रहते हैं। इन्हीं पांच संतुलित तत्वों से निवास स्थान व कार्यस्थल आदि का वातावरण तथा वास्तु, शुद्ध व संतुलित होता है, तब कही जाकर प्राणी की सही अर्थ में सात्विक आधार व माध्यम से उचित प्रगति होती है। यह ब्रह्मांडीय उर्जा मनुष्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण चराचर जगत को प्रभावित, संचालित, नियंत्रित करती हैं। वही चीनी विद्या फेंगशुई में मात्र दो तत्वों की प्रधानता बताई गई है - वो है वायु एवं जल। वस्तुतः ये पंचतत्व सनातन हैं। तभी हमारे महान ऋषि मुनियों ने एक ऐसे शास्त्र की परिकल्पना व रचना की जिसे आज हम वास्तु शास्त्र के नाम से जानते है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य एवं समरसता स्थापित कर भवन निर्माण के दिव्य सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है जिससे हमें अपने जीवन में समस्त सनातन शास्त्रों, वेदों का सार चार पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति सहज रूप में हो सके | वास्तु अनुरूप भवन निर्माण इस प्रकार का हो कि सूर्य की शुभ ऊर्जा व प्रकाश समस्त दिशाओं से प्रवेश करे तथा भवन हर ऋतु के अनुकूल हो, जिससे परिवार स्वस्थ व उत्तम जीवन यापन कर सके | वास्तु शास्त्र का आधार पूर्णत: वैज्ञानिक और आध्यात्मिक है जिसका उच्चकोटि का विस्तृत विवरण व महत्ता ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद में उपलब्ध है |
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