वशीकरण के पांच चमत्कारी उपाय | - YouTube:
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Friday, December 16, 2011
Thursday, December 8, 2011
Saturday, December 3, 2011
Saturday, June 25, 2011
स्वस्थ्य जीवन यापन का शास्त्रीय,वैज्ञानिक, वैदिक आधार - वास्तु शास्त्र .....!!!
आकाश, अग्नि, जल, वायु एवं पृथ्वी इन पांच तत्वों को हमारे सभी प्रमुख शास्त्रों में पंचमहाभूत कहा गया है, यह सिद्धांत मनुष्य जीवन का मूल है। वास्तु शास्त्र में भी इसके बारे में विस्तृत वर्णन है क्यूंकि वास्तु शास्त्र का आधार ही प्रकृति है अर्थात प्रकृति प्रदत्त शुद्ध, प्राणदाई उर्जा का उचित संचरण ही वास्तु शास्त्र है | जिस प्रकार नियंता, सृष्टिकर्ता परम पिता परमेश्वर पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), प्रकाश, वायु व आकाश को रचकर, उन्हें संतुलित रखकर संसार को नियमपूर्वक चलाते हैं। मननशील विद्वान लोग उन्हें अपने भीतर जानकर संतुलित हो प्रबल प्रशस्त रहते हैं। इन्हीं पांच संतुलित तत्वों से निवास स्थान व कार्यस्थल आदि का वातावरण तथा वास्तु, शुद्ध व संतुलित होता है, तब कही जाकर प्राणी की सही अर्थ में सात्विक आधार व माध्यम से उचित प्रगति होती है। यह ब्रह्मांडीय उर्जा मनुष्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण चराचर जगत को प्रभावित, संचालित, नियंत्रित करती हैं। वही चीनी विद्या फेंगशुई में मात्र दो तत्वों की प्रधानता बताई गई है - वो है वायु एवं जल। वस्तुतः ये पंचतत्व सनातन हैं। तभी हमारे महान ऋषि मुनियों ने एक ऐसे शास्त्र की परिकल्पना व रचना की जिसे आज हम वास्तु शास्त्र के नाम से जानते है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य एवं समरसता स्थापित कर भवन निर्माण के दिव्य सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है जिससे हमें अपने जीवन में समस्त सनातन शास्त्रों, वेदों का सार चार पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति सहज रूप में हो सके | वास्तु अनुरूप भवन निर्माण इस प्रकार का हो कि सूर्य की शुभ ऊर्जा व प्रकाश समस्त दिशाओं से प्रवेश करे तथा भवन हर ऋतु के अनुकूल हो, जिससे परिवार स्वस्थ व उत्तम जीवन यापन कर सके | वास्तु शास्त्र का आधार पूर्णत: वैज्ञानिक और आध्यात्मिक है जिसका उच्चकोटि का विस्तृत विवरण व महत्ता ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद में उपलब्ध है |
Thursday, June 16, 2011
भवन निर्माण से पूर्व जाने सरल वास्तु सूत्र जो है सुख, समृद्धि, भाग्योदय का आधार
जीवन में सफलता को प्राप्त करने में बड़ी अहम् भूमिका मनुष्य की शुभ उर्जा, सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास, निरंतर सतत प्रयास और उसके आस पास तथा निवास का वातावरण व उसकी उर्जा का प्रभाव होता है | यदि निर्माण के समय वस्तु सम्मत निर्माण कराया जाये तो घर का हर आपको शुभता देगा व वास्तु देवता के आशीर्वाद से आप सफलता का वरण कर सकेंगे | ब्रहमांड तथा भू गर्भ से आने वाली शुभ, सकारात्मक उर्जा का सही समन्वय ही जीवन के हर क्षेत्र में तथा भाग्योदय में भी सहायक होती हैं। आइये अब वास्तु के कुछ प्रमुख सूत्र पर चर्चा करते है :-
1 - सर्वप्रथम पूर्व दिशा जो हमें सौर्य ऊर्जा प्रदान करती हैं, सूर्य जिसे ज्योतिष में इस सम्पूर्ण सृष्टि का प्राण, मनुष्य की आत्मा और सामाजिक प्रतिष्ठा, यश, बल, ऐश्वर्य व ख्याति का प्रदाता माना जाता है। अत: भवन निर्माण में इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि नीची होना चाहिए। अधिक से अधिक दरवाजे, मुख्य प्रवेश द्वार, खिडकियां, रोशनदान, उपवन, बागीचा, बरामदा, बालकनी, आदि पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त होता है।
2 - फिर बारी आती है उत्तर दिशा की, जैसा हम जानते है उत्तर दिशा में उत्तरी ध्रुव होने के कारण चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। जिसके आसानी से भवन में प्रवेश हेतु ही भवन निर्माण के समय इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान व ढाल रखना चाहिए।यह चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी है शयद इसी लिए शास्त्र में उत्तर को माँ लक्ष्मी और कुबेर की दिशा कह कर समान्नित किया गया है तो अपने प्रभाव स्वरुप यह दिशा स्वास्थ्य के साथ ही यह धन व आर्थिक इस्थिति को भी प्रभावित करती हैं। यहाँ जल क्षेत्र बनाया जाना लाभ देता है |
3 - उपरोक्त दोनों दिशाओ की महत्ता से आप इन दोनों के समिश्रण से बनी उपदिशा की महत्ता को भी स्वीकार अवश्य करेंगे | अत: इसी कारण से उत्तर-पूर्व दिशा अर्थात ईशान कोण में देवी - देवताओं का स्थान होने की बात शास्त्र में कही गई है, इस दिशा में चुम्बकीय तरंगों के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। जहाँ किसी भी व्यक्ति को प्रात; काल स्नान से निर्वित्त हो कर कुछ समय ध्यान में अवश्य व्यतीत करना चाहिए | ईशान कोण से घर का मुख्य प्रवेश द्वार सम्पन्नता, समृद्धि लेकर आता हैं, वास्तुशास्त्र में इसे विशेष शुभ व लक्ष्मी के द्वार की संज्ञा दी गई है। विद्यार्थी यदि इस स्थान पर पूर्व या उत्तर मुख हो कर अध्यन करेंगे तो अच्छे अंक अर्जित करने के साथ उत्तम व उज्जल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
4 - दक्षिण- पूर्व (आग्नेय) दिशा में पूर्व मुख रसोई का स्थान निश्चित है उसके आलावा समस्त विद्युत उपकरण यहाँ लगाये |
5 - उत्तर- पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष, सेवक कक्ष, अतिथि कक्ष, विवाह योग्य कन्या का कक्ष, घर के विवाहित बच्चो का कक्ष या फिर गोशाला, वाहन रखने का स्थान बना सकते है।
6- दक्षिण दिशा में शौचालय, स्टोर,के आलावा घर का सभी भरी सामान रखा जाना चाइये |
7 - दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) दिशा में परिवार के मुखिया अर्थात परिवार के वरिष्ट व्यक्ति का कक्ष सबसे उत्तम वास्तु माना गया हैं। सीढिय़ों का निर्माण भी इसी दिशा में घडी की सुई की दिशा में होना चाहिए जिससे वह उत्तर या पूर्व में समाप्त हो। इस दिशा अधिक से अधिक भरी रखने का प्रयास करे, जादा खुला न रखे, स्टोर भी यहाँ बनाया जा सकता है। किसी भी प्रकार का गड्ढा, अथवा जल स्थान नलकूप, बोरिंग प्रयोजन यहाँ न करे | यहाँ शौचालय बना सकते है |
8 - पश्चिम दिशा में शौचालय, स्टोर, ओवर हेड टेंक, भोजन कक्ष बनाएं जाने चाहिए।
Wednesday, June 15, 2011
क्या आपके बच्चे कुसंगति, दुर्वसन के शिकार है.....?
क्या आपके बच्चे कुसंगति, दुर्वसन के शिकार है ?
क्या आपकी संतान आपका कहना नहीं मानती ?
क्या आपकी संतान के संस्कार व आदते गलत हो गई है ?
क्या आपके घर में संतान की वजह से कलह, क्लेश, अशांति रहती है?
घर का वातावरण होगा शांत, मिलेगी सम्पन्नता....?
रामचरित मानस की एक चौपाई....बदल देगी बुरी आदते....मिलेंगे उत्तम संस्कार....
|| कौन सुकाज कठिन जग माहि | जो नहीं होत तात तुम पाहि ||
इस चौपाई को घर का बड़ा व्यक्ति या संतान की माता जाप करे, यदि इस चौपाई का सुन्दरकांड के साथ सम्पुट पाठ किया जाये तो चाहे कितनी ही पुरानी गलत आदत, गलत संगत हो...सारे बुरे संस्कार, बुरी आदते चालीस दिन में चली जाती है |
सर्व प्रथम हनुमान जी की एक फोटो या मूर्ति अपने समक्ष स्थापित करे, उन्हें गुड चने, शहद - मुनक्का भोग लगा कर सिंदूर, चमेली का तेल अर्पित करे |
हाथ में जल, पुष्प, अक्षत, एक रूपये का सिक्का, एक खड़ी सुपारी लेकर मन में जो भी इक्षा है या जिस कार्य के लिए करना चाहते है उसे संकल्प स्वरुप कहना चाइए | उसके बाद इस चौपाई का जाप या सम्पुट पाठ करे | पाठ या जाप के बाद हनुमान जी की आरती धुप, गुग्गुल से अवश्य करे और परिवार के सदस्यों में प्रसाद का वितरण कर स्वयं ग्रहण करे |
Sunday, April 17, 2011
Thursday, February 10, 2011
Wednesday, January 5, 2011
Sunday, January 2, 2011
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